Pain of a Farmer : Second Part / किसान का दर्द: द्वितीय भाग

नमस्कार दोस्तों! एक बार फिर आप लोगों के समक्ष अपनी नयी रचना  'किसान का दर्द : द्वितीय भाग' के साथ प्रस्तुत हूँ। एक कविता बहादुर भारतीय सैनिकों के नाम


इसके प्रथम भाग की प्रस्तुति की मुझे काफी सराहना मिली ।  काफी अच्छे कमेंट्स भी आप लोगों की तरफ से मिले।इसके लिए मैं आप सभी का आभारी हूँ और द्वितीय भाग को जल्द  हीआप लोगों समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। आशा है इसे भी आप पूरा सम्मान और प्यार देंगे। किसान का दर्द   प्रथम भाग



किसान का दर्द: द्वितीय भाग


अब तो किसान और परेशान हो गयाज

जब से किसी स्कीम का अभियान हो गया। 


न साथ ही मिला कोई विकास ना हुआ

उसके काम की मजूरी तो अनुदान हो गया। 


चुनकर जिसे भी भेजा करने विकास को

संसद में जाके वो तो विरजमान हो गया। 


खतरे में पड़ गयी है पहिचान देश में

जबसे अमीर देश का किसान हो गया। 


मकान उसका बिक गया सामान बिक गया 

हर दुख का आँकड़ों में ही निदान हो गया। 


लूटा है रोज़ उसको मिलके हरेक ने

लुट लुट के चूर उसका स्वाभिमान हो गया। 


पैरों में लोट जाते हैं इक वोट के लिए

मंत्री जी बन वो सोंचते भगवान हो गया। 


मिलता नहीं है फ़ायदा सरकारी लाभ का

सरकारी दफ्तरों में ही व्यवधान हो गया। 


जगती नहीं क्यूँ लेखनी गरीबों के प्रभात को

हर शायर ही यहाँ जैसे कलमदान हो गया। 



दोस्तों अगर यह रचना आप लोगों को अच्छी लगे तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ शेयर जरूर करें। इससे मुझे और भी मूल्यवान कवितायें आप लोगों के लिए लिखने का मनोबल मिलेगा। 


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