नमस्कार दोस्तों! आज एकबार फिर आपलोगों के समक्ष अपनी नयी कविता 'किसान का दर्द : प्रथम भाग' प्रस्तुत कर रहा हूँ।
किसान जिसको अन्न दाता कहते हैं। जो अपनी मेहनत से सभी देशवासियों का पेट भरता है लेकिन आज उसकी क्या दुर्दशा है आप सभी उससे अवगत हैं। आज वही किसान दाने दाने को मोहताज है। उसके परिवार की सुध लेने वाला कोई नहीं है। कभी नारा हुआ करता था' जय जवान जय किसान'। जिस किसान को अपने खेतों में होना चाहिए उसी किसान को आज अपने हक के लिए सड़क पर बैठना पड़ रहा है।एक कविता बहादुर भारतीय सैनिकों के नाम
किसान का दर्द
अब तो किसान और परेशान हो गया
जब से किसी स्कीम का अभियान हो गयागया।
घर तो कोई मिला नहीं किसी गरीब को
पर बाबुओं का घर तो आलीशान हो गया।
खेतों में उसके फसलें इस बार ना उगी
खेतों का हल जो वोट का निसान हो गया।
काग़ज़ में कद बढ़ा दिया उसका प्रधान ने
असल में उसका खाली तो खलिहान हो गया।
अनाज अपना बेंचने निकला था आज घर से
ट्रैक्टर लदा ज़ियादा तो चालान हो गया।
मुद्दा तो कब का दब गया भूखे किसान का
सबसे जरूरी देश में मतदान हो गया।
असल में तो किसान को कुछ भी मिला नहीं
पर कागजों में तो उसे भुगतान हो गया।
सर उठा के चलते हैं नेता जी शान से
गरीब उनके पाँव का पायदान हो गया।
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