सफलता में रुकावट या असफलता के वैसे तो ढेर सारे कारण होते हैं लेकिन जो प्रमुख कारण होता है वो है आपका डर। डर भी कई तरह के होते हैं जैसे असफलता का डर, अनजाना डर, अपने को खोने का डर, अपने खराब स्वास्थ्य का डर, आलोचना का डर आदि।
लेकिन आपकी सफलता में रुकावट के लिए जिम्मेदार जिस डर की बात करेंगे वो है आलोचना का डर। आलोचना के डर का प्रभाव व्यक्तिगत उपलब्धि और सफलता के लिए बहुत ही घातक होता है क्योंकि आलोचना का डर आपके पहल करने की क्षमता यानी इनिसियेटिव को नष्ट कर देता है।
आलोचना का डर |
और साथ ही साथ यह व्यक्ति की कल्पना शक्ति (इमैजीनेसन)के उपयोग करने की क्षमता को भी हतोत्साहित करता है।
आलोचना का डर व्यक्ति की सफलता की राह में सबसे बड़ा रोड़ा साबित हो सकता है अगर समय रहते इसमें सुधार नहीं किया गया तो। आप भी जानिए कि लोगों को प्रभावित कैसे करें how to impress anyone in hindi
तो आइये ये जानने की कोशिश करते हैं कि आलोचना रूपी डर के लक्षण क्या क्या होते हैं , कैसे इसे पहचान सकते हैं कि कहीं हमारे अंदर तो इस तरह का डर नहीं है जो हमारी सफलता में रुकावट डाल रहा है और जिनको जानकर , तथा इनसे बच कर हम सफलता की सीढ़ी चढ़ सकते हैं ।
आलोचना के डर के लक्षण
आत्म चेतना या सेल्फ कांसियस
व्यक्ति कितना आत्म केंद्रित या सेल्फ कांसियस है यह आमतौर पर अजनबियों से मिलने पर या उनसे बातचीत करते समय उसकी घबराहट को देखकर जान सकते हैं। ये भी पढ़े 11 Best motivational quotes in hindi
इसके अलावा हाथों और अन्य शारीरिक अंगों के इधर उधर हिलाने से तथा उसकी आँखों की चपलता ( आई मूवमेंट) को देखकर भी ये जाना जा सकता है।
झूँठ बोलने की प्रवृति
आलोचना के डर के कारण व्यक्ति की प्रवृति झूठ बोलने की हो जाती है जिससे व्यक्ति का उसकी आवाज पर नियंत्रण नहीं रह जाता है।
इसको इस तरह से समझ सकते हैं कि व्यक्ति बोलना कुछ चाहता है और बोलता कुछ है। व्यक्ति दूसरों की उपस्थिति में घबराहट महसूस करता है, उसकी भाव भंगिमा या बॉडी पॉस्चर खराब हो जाता है और उसकी स्मृति या याददास्त खराब होती है।
आलोचना के डर के कारण व्यक्तित्व का खराब होना
आलोचना के डर के कारण व्यक्ति का पूरा व्यक्तित्व खराब हो जाता है, उसके निर्णय में दृढ़ता की कमी देखने को मिलती है।
आलोचना के डर के कारण व्यक्तिगत आकर्षण समाप्त हो जाता है और उसकी राय व्यक्त करने की क्षमता भी प्रभावित होती है यानि कि अपनी निश्चित राय रखते समय व्यक्ति असहज महसूस करता है। सिर्फ सोंचने और बात करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कार्य करना। Working is more important than just thinking and talking.
समस्याओं से निपटने की जगह उनसे बचने की आदत हो जाती है तथा ऐसा व्यक्ति बगैर विश्लेषण किये ही लोगों की बातों से सहमत हो जाता है।
हीन भावना का उत्पन्न होना
आलोचना के डर से व्यक्ति में हीन भावना उत्पन्न हो जाती है, अपनी हीन भावना को ढकने के लिए व्यक्ति को आत्म अभिव्यक्ति की आदत हो जाती है, वह अपने शब्दों और क्रिया कलापों से अपने आप को व्यक्त करने का प्रयास करता है।
दूसरों को प्रभावित करने के लिए बड़े बड़े शब्दों का प्रयोग करता है जबकि उन शब्दों के वास्तविक अर्थों से वह अनभिज्ञ होता है।
ऐसा व्यक्ति लोगोँ के रहन सहन, उनकी पोशाक, लोगों की बातचीत, और उनके तौर तरीकों की नकल करने लगता है।
व्यक्ति अपनी उपलब्धियों की कल्पना करता है और उनपर अपने घमंड को प्रदर्शित करता है जिससे कभी कभी उसे सतही तौर पर श्रेष्ठता की भावना की अनुभूति होती है।
अपव्यय करने की आदत
आलोचना के डर से व्यक्ति में अपव्यय करने की आदत हो जाती है वह दूसरों के समकक्ष दिखने के लिए अपनी आय से ज्यादा खर्च करने लगता है। ज्योतिष के बारे में पढ़ने के लिए क्लिक करें
पहल करने का अभाव
आलोचना रूपी डर के कारण व्यक्ति आत्म उन्नति के लिए मिलने वाले अवसरों को पहचान नहीं पाता और उन्हें गवां देता है, अपनी राय या विचार रखने में उसे डर लगता है।
अपने अच्छे आईडिया को भी रखते समय आत्मबल (कान्फिडेंस )की कमी अनुभव करता है। वरिष्ठों द्वारा पूँछे गये प्रश्नों के स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाता है, ऐसे व्यक्ति के क्रिया कलापों और बातचीत में झिझक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
आकांक्षाओं की कमी
आलोचना के कारण व्यक्ति में आकांक्षा और महत्वाकांक्षा की कमी देखने को मिलती है साथ ही साथ व्यक्ति में मानसिक और शारीरिक आलस्य, अपने से निर्णय लेने की क्षमता का अभाव, निर्णय लेने में देरी और दूसरों से जल्दी प्रभावित होने के लक्षण दिखाई देते है। पैसों से संबंधित लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें
ऐसे व्यक्ति को पीठ पीछे लोगों की बुराई करने और सामने से चापलूसी करने की आदत होती है, ऐसे व्यक्ति बिना किसी विरोध के अपनी हार को स्वीकार कर लेते हैं और किसी के विरोध करने पर अपने अनुक्रम को तुरंत छोड़ देते हैं।
ऐसा व्यक्ति बिना किसी कारण के लोगों के ऊपर शक करता है और उसकी बातों और तौर तरीकों में कुशलता ( टैक्टफुलनेश) की कमी देखी जा सकती है, कभी भी अपनी गलतियों को स्वीकार करने की उसकी इच्छा नही होती है।
अभी तक हमनें जाना कि आलोचना के डर के लक्षण क्या क्या होते हैं अब हम उनको दूर करने के बारे में चर्चा करते हैं।
आलोचना रूपी डर को दूर करने के उपाय
डर किसी भी तरह का हो वो सफलता के लिए अच्छा नहीं होता। हमें कभी भी डरना नहीं चाहिए सिर्फ अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए। हमारा डर हमें बताता है कि हमारा ध्यान लक्ष्य पर न होकर उसके फल पर है जिसके कारण हम पूरी शक्ति के साथ प्रयास नहीं कर पाते।
डर हमें यह बताता है कि हम वर्तमान को नहीं जी रहे हैं बल्कि हमारा ध्यान भविष्य के उपर है। जबकि होना ये चाहिए कि जब हम अपने वर्तमान में रहकर प्रयास करते हैं तो भविष्य अपने आप सुरक्षित हो जाता है।
कभी कभी हम समस्याओं को बड़ा करके देखते हैं जिसके कारण भी भय उत्पन्न होता है अतः यथार्थ को देखे।
डर को दूर करने के लिए विषय की पूरी जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करें, कभी कभी जानकारी का अभाव भी डर उत्पन्न करता है।
असफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी होती है तो ये सोचें कि ज्यादा से ज्यादा क्या होगा असफलता मिलेगी लेकिन उसके साथ सीख भी मिलेगी अतः डरें नहीं। अपने डर को दूर करके आगे बढ़ें।
आशा है कि इससे आपको अपनी सफलता में रुकावटों के कारणों और उनसे बचने के उपायों की जानकारी मिल गयी होगी।
ये लेख आपको कैसा लगा अपने विचारों से अवगत जरूर करायें।